कहावत है कि माँ का हृदय आंसूओ से भरा होता है। स्वर्गवासी बाबू विश्वनाथ की दूसरी पत्नी भी अपने बेटे शिवनाथ उर्फ शिब्बू के चालचलन देख देखकर खून के आँसू बहाती थी। शिब्बू अपने चाचा काशीनाथ की संगत में रहकर आवारा बन चुका था जिसका नतीजा यह हुआ कि बाबू विश्वनाथ सारी जायदाद अपने बड़े लड़के गोपीनाथ के नाम वसीयत कर गए।
गोपीनाथ की सौतेली माँ होते हुए भी उसे इतना प्यार करती थी जैसे गोपी को उसने उसका कोख से जन्म दिया हो। वसीयतनामे से उसे न तो आश्चर्य हुआ न कोई दुख परन्तु काशीनाथ से चुप न बैठा गया उसने शिब्बू को इतना भडकाया कि दोनों भाइयों के बीच एक दीवार खड़ी हो गई।
जब गोपीनाथ को यह मालूम हुआ कि वसीयतनामा दोनो भाइयों के प्यार में ज़हर घोल रहा है उनसे न रहा गया उन्होंने वसीयतनामा जला दिया। और यह भेद सिर्फ गोपीनाथ की पत्नी रूकमणी को मालूम था। परन्तु एक दिन बात बात में यह भेद रूकमणी शिब्बू को बता दिया ताकि वह उस जगह शादी करने को तैयार हो जाय जहां घर के लोग चाहते थे। परन्तु इससे पहले शिब्बू के जीवन में उसकी भाभी रूकमणी के मामा बैरिस्टर माणिकचंद की लड़की कस्तूरी आ चुकी थी। बैरिस्टर सा. कस्तूरी की बात दूसरी जगह कर चुके थे इधर शिब्बू ने साफ साफ कह दिया कि अगर उसकी शादी कस्तुरी से नहीं हुई तो वह आ जन्म कुवाँरा रहेगा।
गोपीनाथ अपने सोतेले भाई शिब्बू को बहुत चाहता था और शिब्बू और कस्तूरी की शादी करने का जिम्मा ले लिया। मगर संजोग ऐसे बने कि शिब्बू को यकीन हो गया कि उसके भाई गोपीनाथ का कस्तूरी से अनुचित सम्बन्ध है। यह बात गोपीनाथ के कानों तक पहुँची और उससे इतनी बड़ी तोहमत सहन नहीं हुई। रूकमणी और नन्हे बेटे पवन के साथ घर छोड़ दिया। सारी जायदाद शिब्बू के हवाले कर दी।
क्या दोनों भाइयों का मिलन हुआ?
क्या लाखों की जायदाद पाकर शिब्बू चैन से जिन्दगी बिताने लगा?
क्या माँ इतना बड़ा सदमा सहन कर गई?
इसका उत्तर रूपल्ले पर्दे पर मिलेगा।
(From the official press booklet)